लेबंटी चाह 

अभिषेक ओझा 

Kindle version is available globally, search for lebanti chah on your preferred Amazon store

if a physical copy is not available in your country and you don't use kindle - drop a note to sales@rajpalpublishing.com

व्यंग, रंग बदलती दुनिया, विलुप्त होता लोक और नोस्टेल्जिया का नायब मिश्रण

"अनुराग को लगा कि जैसे ज़िंदगी लेबंटी-सी है। चाह है । गोल्डन। थोड़ी खट्टी। थोड़ी मीठी। एक बार जो स्वाद मिला वो दुबारा ढूँढते रहो। वही बनाने वाला भी स्वयं दुबारा नहीं बना पाता ठीक वैसी ही चाह। चाह में किसी को कम दूध, किसी को ज़्यादा, किसी को मीठी, किसी को फीकी। बड़े लोग ब्लैके परेफ़र करते हैं। पता नहीं अच्छा लगता है या हो सकता है कि उनकी क़िस्मत में ही नहीं होता दूध-शक्कर, भगवान जाने! उसी में किसी को अदरक, लौंग-इलायची और लेमनग्रास भी चाहिए तो किसी को कुछ भी नहीं! संसार की हर बात का कारण चाह ही तो है ...।" 

तेज़ी से विलुप्त होते लोक के नोस्टेल्जिया को व्यंग के रंग में डुबोकर लिखी लेबंटी चाह पढ़ते हुए कभी आप हँसेंगे तो कभी ठंडी आह भरेंगे। पटना की पृष्ठभूमि पर लिखे उपन्यास में नए-पुराने, देशी-विदेशी अनूठे किरदार चले आते हैं जिनका चित्रण ऐसा सजीव है कि मानो सब कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा है और सादगी से जो कभी इतनी गहरी बात कह जाते हैं कि मन हरियर हो जाता है... और मिज़ाज चकाचक।

आईआईटी कानपुर से शिक्षित अभिषेक ओझा एक दशक से न्यूयॉर्क में इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में कार्यरत हैं और 'ओझा उवाच' उनका लोकप्रिय ब्लॉग है। स्वभाव से जिज्ञासु, आदत से पढ़ाकू और शौक़ से लेखक अभिषेक ओझा की यह पहली पुस्तक है।

*पुस्तक और लेखक परिचय का एक  संस्करण ऐसा था - 

लेबंटी चाह पढ़ते हुए आप ठठाकर हँसेंगे तो आह भी भरेंगे। कुछ मन को कचोट जाएगा, एक टीस भी उठेगी जिससे आँखें छलछला जाएँगी। व्यंग के साथ रंग बदलती दुनिया, विलुप्त होता लोक, और नोस्टेल्जिया के मिश्रण का यह एक नायाब प्रयोग है। किरदार, परिवेश और बोली जस के तस। अलग-अलग कालखंडों में झूलते किरदार और प्रेम की डोर पर लचकते रिश्ते। चित्रण ऐसा सजीव कि सब कुछ आँखों के सामने बिछ जाता है। जीवंत किरदार चले आते हैं चहलक़दमी करते और दिखने लगती है उनमें अपने अनुभवों की परछाई। फिर हँसी-हँसी में ही गहरी बातें निकल आती है। मन हरियर हो जाता है... मिज़ाज चकाचक। अंत में एक आस बची रह जाती है …और पढ़ने की। 

आईआईटी कानपुर से शिक्षित अभिषेक ओझा एक दशक से न्यूयॉर्क में इन्वेस्टमेंट बैंकिंग में कार्यरत हैं और 'ओझा उवाच' उनका लोकप्रिय ब्लॉग है।  स्वभाव से जिज्ञासु, आदत से पढ़ाकू और शौक़ से लेखक। गणित, कला एवं मानव व्यवहार में रूचि रखने वाले अभिषेक घूमने और अच्छी फ़िल्में देखने के शौक़ीन हैं। एक दर्जन से अधिक देशों की यात्राएं कर चुके हैं। वॉल स्ट्रीट में कामकाज के साथ-साथ सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क और फ़ोर्डम विश्वविद्यालय में बतौर विजिटिंग फ़ैकल्टी मशीन लर्निंग तथा वित्तीय गणित पढ़ाते हैं।