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प्रकाशन पूर्व लेखन शैली पर कुछ चुनिंदा टिप्पणियाँ
पटना सीरीज़ का राइिटंग पूरे कतलियाटिक है. बैरीकूल का जवाब नही. आ पटना को अलगे लेभेल पर पहुंचा दिए हो. पटना का इज्जत बढ़ा दिए हो. आज के पटना पर चरचा होगा त तुम्हारा ई लेखवा सब इनक्लूड किये बिना कहानी पूरा नहीं होगा. जितना वाह-वाह करे कम ही होगा. पढ़कर लगा कि पटना को जी ले रहे हो. पटना भी धन्य हो गया होगा तुम्हें पाकर.
विलुप्त होता लोक, तुम्हारी पटना पोस्ट में कितना ज़िंदा होकर उभरता है। इसे पटना के लोग आह भरते हुए 'वो भी क्या दिन थे' कर कर के पढ़ रहे हैं। हर किरदार का डिसक्रिप्शन कमाल का है। बातें ऐसी कि पढ़ के हँस-हँस के पगला जाए। फिर सीरीयस बातें भी कह गए हो, बातों बातों में। शो-स्टॉपर, अंतिमा, आँकड़ा प्रसाद, स्क्रू मार्क्स, वग़ैरह। तुम ना लिखते हो तो एक दम से जी उठता है सब आँख के सामने। सारे किरदार चले आते है चहलक़दमी करते हुए. आसपास के लोगों का एकदम ठीक ठीक ख़ाका खींच देना। उनके डायलोग। उनके कपड़े। उसपर तुम्हारा ख़तरनाक सेंस ऑफ ह्यूमर। चीज़ों की बारीकी सहेजने की कमाल की क्षमता। डिटेलिंग तो हमने क्या ही देखी है जैसा तुम करते हो। वैसे तो बहुत कुछ सीखा जा सकता है किसी से भी। लेकिन तुम्हारी तरह नॉस्टैल्जिया को ऐसे सब रंग में रखना कैसे आएगा। तुमको ना पता नहीं क्या क्या लिखना चाहिए। कभी एक ऑटोबायोग्राफ़ी लिखना। यात्रा संस्मरण। पता नहीं क्या क्या। सब कुछ जो तुम इतना डीटेल में पढ़ते हो. देखते हो। ग़ज़ब लगता है। वैसी ही रामायण का चौपाई याद रहता है तुमको जैसे 'मितवाSS भुउउउउल न जाना मुझSकोओओ'...
वाह! पटना सीरीज क कितबिया कब बन रही है?! [सच मे बैरी से दोस्ती करने का मन हो रहा है। आस पास में तलाशता हूँ - कोई बीरेंदर मिल जाये!]
बहुत बढ़िया लिखते हो बंधु! एक तो ये तुम्हारा पटना पुराण छपना चाहिए, ज़रूर से, और दूसरे शिवकुमार मिसिर की दुर्योधन की डायरी। तब हम साहित्यकारों को लुलुहा सकेंगे कि लो तुम लोगों के कूड़ा के सामने ब्लॉग लिखने वालों का स्तर देख लो!
जो लेखनी आपको मिली है - किस्सागोई की जो शैली आपकी है, वो बिरलों को मिलती है. मैं तो आपकी लेखनी का सबसे बड़ा फैन हूँ. आपके गणितीय प्रेमपत्र को मैंने कितने ही हिंदी सेमिनारों, वर्कशॉप में उदाहरणार्थ बताया है और वाहवाही पाई है :) आपने पटना सीरीज लिखी थी. उसे उपन्यास सा विस्तार देकर पेंगुइन आदि में भेजें. बड़ी ही मजेदार सीरीज थी वो.
अनूप शुक्ला कथा रस अद्भुत है अभिषेक भैया की खटर-पटर में। ग़ज़ब का कैरेक्टर है बीरेंदर भैया! आज पढ़े इसको और बहुत अच्छा लगा। किताब भी छप जाए अब तो.
आंचलिक सुगंध से भरपूर !
पटना संस्मरण सदा ही अविस्मरणीय बन मन मे बैठ जाया करता है... जब मन मायूस होता है न, पन्ना खोलके बैठ जाते है... पर का जाने काहे, खुल के खिलखिला नै सके आज... बरा जोर से कुछ कचोट गया... विसंगतियां अंदर तक बेध गयी. खैर, गुरु का गोरू और ऐसे ही असंख्य माटी की महक लिए शब्दों/ कहनों से मन भिगोने के लिए ढेर ढेर आभार..
ऐसा एकूरेट उतार देते हो बबुआ कि लगता है कि बस पढ़ते रहें ,पढ़ते रहें, पढ़ते रहें.. ई अद्भुत पटना पुराण... कसम से एक एक शब्द/सीन आँखों के आगे बिछा देते हो... लाजबाब...गज्जब ...जियो... ई पूरा सीरीज को छपवाओ... देखना कैसे लोग इसको हाथो उठा हिरदय से लगा लेंगे. काहे कि माटी का महक जिसके भी नथुनों में बस रहा होगा, उसके लिए यह अमरित बन करेजा पर बरस जायेगा, जिया जायेगा..
जियो बबुआ जियो... एकदम से मिजाज चकचका दिए हो... जब से हिन्दी पढ़ लिख रहे हैं, पहिला बार बिर्हनी लिखित में पढ़े... लेबंटी का खटका मिठका सुवाद मुंह में हियें बैठे घुल गेया... ई सब सब्द संजोग के रखने जुगुत है ...जब परदेश में माटी के लिए टीस उठेगा, उठाके इसको गरदनिया लगा लेंगे आ बस्स....मन हरियर.. जारी रखना.. इलाका सैर करने को जब भी मन अकुलाएगा, पढ़, मिज़ाज चकचका लिया करेगे।
...बरी मुसकिल से हँसी रोके है अफिसवा में। गरदा उड़ा के रख दिया है ई बीरेंदरवा। यण संधि , पीरियाडिक टेबल, पादेन खंज: ... येनांग से यौनांग ... लगता है कि रेणु, श्रीलाल शुक्ल और कनचोदा वाले विवेकी राय को एक साथ पढ़ रहे हो।
लगे रहो भाई। ये पटना क्रोनिकल्स कभी न कभी एमए हिन्दी में पढाये अवश्य जायेंगे। उस दिन के लिये "क्रोनिकल्स" की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी अभी से ढूंढकर रख लो, न मिले तो राजेस जी की डूटी लगा दो.
तुम असली माल खोज के लाते हो जी... हीरा आदमी हो यार ! हमको हमारी जवानी याद आ जाती है. तुम्हारी ये पटना सीरीज़ कालजयी है- नोट कर लो। बहुत गहरी नज़र। लंगवैज तो डिट्टो उतार दिए हो। हम भी शायद अगर कभी लिखते तो ऐसा ही लिखते। मुझे कोई शिकायत नही तुमने कमी पूरी कर दी दोस।
बहुत शानदार। तुमको बता नही सकते है दोस की तू केतना दरद उखाड़ दिया है. यकीन करो हम अपने आँख से आगे ऐसा होता हआ देखे. तुम्हारे शुक गुजार हैं जो ये जीवंत तस्वीर देखने पढने को मिला. रेणु की याद आ गयी. इतना डीटेलिंग वहां घूम कर ही मिल सकता है.
.. और पटना डायरी पर पाठकों की अनेक टिप्पणियाँ.